बात उन दिनों की है जब मैं 9th क्लास में थी और स्कूल में स्पोर्ट्स के लिए बच्चो को अंडर १६ और १९ के लिए सेलेक्ट कर रहे थे, मैंने सोचा की क्यों न स्पोर्ट्स में भी टॉय किया जाये, ज्यादा से ज्यादा कोई रैंक नहीं ला पाऊँगी पर कोशिश करती हूँ और इसी बहाने किसी और शहर में घूमने को भी मिलेगा।
तो क्या हम चल दिए टीचर के पास मुँह उठाके, किसी से कम थोड़ी है हम भी।
टीचर को शॉट पुट में और लॉन्ग जम्प में अपना नाम लिखने को बोल दिया और फिर हम सब लोग प्रैक्टिस में लग गए।
अब तो क्लासेज भी बँक करने लगे यह बोलकर की सर प्रैक्टिस करनी है , सर लोग भी कुछ नहीं बोल सकते थे क्यूंकि हम सच में प्रैक्टिस करते थे।
एक दिन टीचर बोली की कोई भी ४०० मीटर और ८०० मीटर रेस में नहीं है , किसी को बोलो की नाम दे पर कोई रेडी ही नहीं हुआ।
टीचर को भी हर फील्ड में बच्चो के नाम देने थे तो उन्होंने हमसे कहा कोई रेडी नहीं हुआ बस एक मैं थी जिसने टीचर को बोला मेरा नाम लिख दीजिये।
घर आकर पापा मम्मी को बताया तो वो बोले ३ या ४ दिन में कैसे होगी प्रैक्टिस, रेस में लिया है उसके लिए प्रैक्टिस होनी बहुत जरुरी है। बात तो पापा की एकदम सही थी पर अब तो नाम दे चुकी थी।
हमे अपने शहर से दूसरे शहर के केंद्रीय विद्यालय जाना था जहा से हम स्टेट के लिए खेलते पहला स्टॉप था बरैली का केंद्रीय विद्यालय , वह पर ३ दिन का स्पोर्ट्स था मेरा ४०० मीटर्स और ८०० मीटर्स की रेस दूसरे दिन थी जिसकी कोई उम्मीद नहीं थी मुझे।
दूसरा दिन भी आ गया और ४०० मीटर्स रेस के लिए बुलाया गया सब लाइन से खड़े थे और यह बजी सीठी और हम दौड़ने लगे पर उसमे में कोई भी स्तान पर नहीं आयी ,फिर कुछ देर बाद नंबर आया ८०० मीटर रेस का टीचर वैसे हौसला हार चुकी थी फिर भी मेरा मनोबल बड़ा रही थी फिर उन्होंने मुझे ग्लूकोस की पुड़िया दी और बोला की इसको मुँह में रखना और जितना हो भागने की कोशिश करना।
हिम्मत थोड़ी टूट चुकी थी फिर भी सोचा एक और कोशिश क्र लेती हूँ।
सब लाइन में लगे ऑन योर मार्क्स गेट सेट गो हुआ और मैंने पूरी जान लगा कर भागना शुरू किया , उस ग्राउंड के हमे २ पुरे चक्कर लगाने थे।
मैं भागती रही, भागती रही और एक चक्कर पूरा कर लिया था दूसरे चक्कर की तरफ भाग रही थी मै।
बहुत बुरी तरह से थक भी गयी थी और सांस भी फूल रही थी पर जाने पाव रुक ही नहीं रहे थे और मैँ दौड़ती ही जा रही थी , मुझे यह भी नहीं दिख रहा था की मैँ कौनसे नंबर पर हूँ।
मैं बस भागते ही जा रही थी मुझे बस अपने स्कूल के लोगो और टीचर की आवाज आरही थी अंजू अंजू बस रुकना नहीं रुकना नहीं।
मैं भागते भागते फिनिशिंग लाइन तक पहुंच गयी और उसको पार करते ही मैँ गिर गयी।
फिर जब थोड़ा मैँ संभाली तो मुझे पता चला की मैँ ८०० मीटर्स रेस मैँ फर्स्ट आगयी हूँ , सबके चेहरे में मुझसे भी ज्यादा खुशी थी ,वो जीत की खुशी।
मुझे भी यकीन नहीं था की मैं स्टेट लेवल ८०० मीटर्स के लिए सेलेक्ट हो गयी हूँ।
कभी कभी हम अपने को कमजोर समझ लेते है , जिसमे दिल साथ देता है दिमाग नहीं पर मुझे लगता है एक बार कोशिश करने में कोई हर्ज़ नहीं। किस्मत कब दरवाजा खोल दे यह थोड़ी पता होता है।
इसी तरह मैंने भी ८०० मीटर्स की रेस जीती। मेरी पहेली इतनी लम्बी रेस।
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