बात बीस साल पुरानी है जब मैं स्कूल में पढ़ती थी। स्कूल की छुट्टियों में हम दादी या नानी के घर जाया करते थे।
इस बार हम नानी के घर गए थे , मेरी नानी का घर पहाड़ो में है और वहा के किस्से भी कुछ बहुत लाजवाब है कुछ बहुत ही हैरान करने वाल। हमे नानी या मम्मी कुछ न कुछ किस्सा सुनाती रहती थी।
इस बार भी जब मैं हमेशा की तरह घूमने जा रही थी तो नानी ने बोला - अंजू खेलते खेलते वो छोटे से तालाब की तरफ मत जाना और ना ही रस्ते में चलते टाइम जोर से बातें करना।
उस वक़्त तो मैंने बोला हाँ नानी तालाब पर नहीं जाऊंगी और रस्ते में भी ज़ोर से नहीं बोलूंगी। इतना बोल मैं खेलने चली गयी ग्राउंड तक पहुंचते पहुंचते हम करीब चार से पांच दोस्त हो जाते थे बहुत मस्ती करते थे हम लोग। ऐसे ही कुछ दिन निकल गए एक दिन हमने सोचा क्यों ना मस्ती की जाये वो भी थोड़ी डरावनी मस्ती।
तो क्या बस प्लान बन गया सब दोस्तों से बोला की चलो आज तालाब के पास खेलेंगे , कुछ दोस्त रेडी ही गए कुछ ने पहले माना किया पर फिर आगये , कुछ को जबरदस्ती आना पड़ा।
हम वही तालाब पर बैठ गए, तालाब में पत्थर मार के उस तालाब के ही किस्से सुनाने लगे जो हमने अपने अपने घर में सुना था।
बात करते करते थोड़ा सा अँधेरा हो गया था हमने सोचा की क्यों ना अब घर चला जाये पर घर पर तालाब की कोई बात नहीं करेंगे ना ही कोई बताएगा की हम वहा गए थे।
सब दोस्त चलने को तैयार हुए की अचनाक से एक सहेली हेमा का पाव फिसल गया और वो जोर से चिल्लाने लगी , हमे कुछ सेकण्ड्स के लिए डर लगा फिर सोचा पाव फिसल गया होगा।
पर हेमा अचानक से बोल पड़ी की मैं फिसली नहीं थी मुझे किसी ने खींचा था , हमने हेमा की बात पर यकीन ही नहीं किया।
वो बोलती रही की मुझे किसी ने खींचा यकीन करो पर हम चुप चाप चलते रहे और अपने अपने घर आगये।
दूसरे दिन हम सब लोग फिर से मिले पर हेमा नहीं आयी सोचा शायद कुछ काम पड़ गया होगा।
ऐसे हेमा को हमसे मिले चार दिन हो गए हमने सोचा ऐसा भी क्या हुआ चलो उसके घर जाकर पता करते है।
हम हेमा के घर गए उसकी मम्मी ने बताया की उसकी दादी की तबियत ठीक नहीं थी
हमने हेमा से बात की हमसे बोली की चलो आज तालाब के पास चलते है वहा मैंने कल कुछ देखा था , हमने बोला हाँ चलो चलते है।
हम सब अपने ही धुन में चलने लगे , मैंने सोचा की क्यों ना हेमा से उस दिन के बारे में पूछे ?
मैं जैसे ही मुड़ी तो वो नहीं थी ना आगे ना मेरे पीछे , मैंने बाकि दोस्तों से पूछा की अरे हेमा कहा गयी ?
तो एक दोस्त बोली यह तो रही हेमा , अरे यही तो थी कहा गयी वो दोस्त तेज़ आवाज में बोली।
हम डर गए बातों बातों में हमने ध्यान ही नहीं दिया और हम तालाब के पास पहुंच गए थे।
तालाब को देख हम और डर गए जैसे ही पीछे मुड़े हेमा वही खड़ी थी हमे पूछा कहा चली गयी थी तो उसने बड़े ही भारी आवाज में कहा मैं तो यही हूँ हमेशा से , मुझे तो यही छोड़ दिया था ना कोई नहीं आया मुझे लेने...... मैं यही पर रहती हूँ बहुत पहले से फिर हेमा बहुत तेज़ रोने लगी और हमे घूरने लगी , हम लोग बहुत डर गए थे जैसे तैसे हम अपने घर पहुंचे।
रास्ते में हेमा की मम्मी हमे मिली और पूछने लगी की कहा चले गए थे तुम लोग घर से हेमा से बिना मिले , तुम लोगो का नाम सुनकर खुश हो गयी थी छत से नीचे आयी और तुम लोग थे ही नहीं वहा।
हम लोगो को लगा की हेमा तो हमारे साथ ही थी फिर आंटी ऐसा क्यों बोल रही।
हमे हेमा मिली वो हमसे बहुत नाराज थी बोली की मेरे से मिले भी नहीं और चले गए , हम सब दोस्त एक दूसरे का चेहरा ही देखते रह गए। हमे समझ ही नहीं आया की ऐसा कैसे हो सकता है।
हम बिना कुछ बोले अपने घर के लिए चल दिए तभी पीछे से आवाज आयी — कल मिलोगे तालाब में ? हमने पीछे देखा तो वहा कोई नहीं था हम बहुत डर गए और भागे वहा से अपने घर की तरफ।
मुझे तो इतना डर लग गया था की मैं कमरे से रसोई तक भी नहीं जा पा रही थी।
जैसे तैसे मैं सो गयी।
मैं सो ही रही थी की मुझे ऐसा महसूस हुआ की कोई मेरे बगल में बैठा है , मैंने आँखे खोली तो देखा वहा हेमा बैठी हुए थी अजीब सी दिख रही थी सफ़ेद जैसे शरीर में खून ही नहीं हो उसके। मैं बहुत ज्यादा डर गयी मैंने मम्मी को आवाज लगायी पर आवाज ही नहीं निकली ऐसा लग रहा था जैसे कोई गाला दबा रहा हो।
मैं कुछ ना बोल सकी पर हेमा मेरे पास आयी और बोली चलोगी कल तालाब पर ?
मैं चिल्ला कर उठी और आवाज निकली मम्मी - मम्मी , पूछा मुझसे क्या हुआ बुरा सपना देख लिया शायद।
मैं उस वक़्त कुछ नहीं बोली सिर्फ अंदर ही अंदर डरती रही सुबह उठी तो देख मुझे बहुत कमज़ोरी है और तेज़ बुखार भी।
कुछ दिन तक मेरी हालत ऐसी ही रही रोज़ रात को मैं चिल्लाती थी नींद में उठ जाती थी , बुखार भी मेरा कम नहीं हो रहा था और खाना पीना भी सब कम हो गया था।
नानी को लगा की डॉक्टर को तो दिखा दिया फिर क्यों नहीं सही हो रही फिर उन्होंने मुझसे पूछा तो मैंने उन्हें तालाब की सारी बातें बता दी।
घर वालो तो पहले बहुत ग़ुस्सा आया फिर उनको लगा की मुझपर कोई ना भूत लग गया है।
झाड़ फुक करने वाले को बुलाया , जो ऐसे अनदेखी शक्ति की सेवा करते थे उनको घर बुलाया गया और मुझे दिखाया गया।
तब उन्होंने बोला की उस तालाब में गांव की किसी लड़की ने अपनी जान दे दी थी जिससे उसकी आत्मा वहा भटक रही थी। उनकी बात सुनके सब हैरान हो गए और मेरे लिए परेशान।।
मेरा थोड़ा यह डर भगाया गया , उस तालाब के पास मंदिर बनाया गया। पर आज भी जब वहा जाते है तो जाने उतना ही डर आज भी लगता है यहाँ तक की लोग तो बोलते है उस मंदिर में कोई लड़की आकर रोज़ दागा बांधती है पर कोई बात करे तो गायब हो जाती है |
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