देश को आज़ाद हुए आज ७४ साल हो गए ,यह वो आज़ादी थी जो सबने मिलकर ,जान पर खेल कर हमे दिलाई थी।
पर क्या हमने अपने अंदर पल रहे भावनाओ को आज़ाद किया है ?
क्या यह धर्म के भेदभाव से हमे आज़ादी मिलेगी ?
क्या हमे शरीर के रंग को नाप टोल करने से आज़ादी मिलेगी ?
क्या हम ऐसी आज़ादी देख पायंगे जिसमे सब एक हो, जब कोई सड़क पर जख्मी पड़ा हो तो उसको सहारा देने की आज़ादी हो यह नहीं की धर्म बंदिशों में बन्द जाये।
अरे यह मत करो लोग क्या कहेंगे। जाने कब हम उन अनदेखे लोगो से आज़ाद होंगे जिनको हमने कभी देखा नहीं फिर भी उन के डर से आज़ाद नहीं है हम।
लोगो की मानसिकता को आज़ाद होने की जरुरत है, रंग, धर्म यह सब से आज़ाद होने की जरुरत है।
असली आज़ादी जिसमे पहले की तरह सबके लिए सम्मान हो। जिसमे प्यार हो, जहा पूरा देश अलग नहीं एक परिवार हो।
जहा अगर किसी लड़की को कोई तकलीफ हो तो अपनी बहन या दोस्त समझ कर उसका साथ दो यह नहीं की उसका तमाशा तुम भी अजनबी की तरह देखो।
ऐसी आज़ादी ला दो की अगर घर से किसी की बच्ची निकले तो उसको यह भरोसा हो की चारो तरफ अपने ही है और वो आज़ाद सुरक्षित है।
क्यों न आज़ादी का सही मायने समझ ले वो सोने की चिड़िया सा जो देश है हमारा उसको फिर से गर्व से चमका दे।
आज़ाद विचार रखे ,आज़ाद वयवहार रखे। क्यों न सब मिलकर धीरे धीरे कोशिश करे।
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