नौ महीने अपनी खोक में पाला,
खुद के शरीर को तेरे लिए बदला।
कभी सोना चाहा तो कभी रात भर जाएगी,
तुझे देखा नहीं फिर भी तेरे सपने सजाने लगी।
पैरों के सूजन के साथ तेरे अहसास में जीने लगी।
वो कुछ खाना और फिर उलटी करके आना,
अगर बैठ जाऊ तो मुश्किल है खुद को उठाना।
जो बेपरवाह थी कभी आज कदमो को संभाल के चली
सपने सजा लिए थे ,मेरे घर भी आयी एक नन्ही कली।
खुद के शरीर को तेरे लिए बदला।
कभी सोना चाहा तो कभी रात भर जाएगी,
तुझे देखा नहीं फिर भी तेरे सपने सजाने लगी।
पैरों के सूजन के साथ तेरे अहसास में जीने लगी।
वो कुछ खाना और फिर उलटी करके आना,
अगर बैठ जाऊ तो मुश्किल है खुद को उठाना।
जो बेपरवाह थी कभी आज कदमो को संभाल के चली
सपने सजा लिए थे ,मेरे घर भी आयी एक नन्ही कली।
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