मेरी ख़ामोशी को तूने रुसवाई समझ ली,
बिन जाने ही अपनी सोच बदल ली
चलना चाहते थे सीधा पर मोड़ था मुड़ना ही पड़ा ,
चाहते थे तेरा साथ पर साथ छोड़ आगे बढ़ना पड़ा
पलट कर बार बार तुझे ढूंढ रही थी यह आँखे,
तुझसे नजरे मिली तो तू अंजाना बन चला
अपनी खामोशी को तुझे समझाना चाहते थे ,
क्यों बीता ऐसा वक़्त वो बताना चाहते थे
जाने से पहले एक बार जान लिया होता ,
मेरी ख़ामोशी के पीछे छुपे दर्द को पहचान लिया होता
शायद यह आंशु देख तू समझ लेता ,
हम उस दिन भी तुझसे रुसवा ना थे....ना है
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