वो कुछ सकून के पल ,
आज में रहकर वो आता हुआ कल।
हर बार इसी तरह झंझोड़ देता है ,
कितना भी छुपा ले पर यह आँखों से बोल ही देता है।
हर रिश्ते को हस्ते हस्ते निभा दिया ,
पर मुड़ कर देखे तो हमने कितना अपना वक़्त गवा दिया।
खुद से इतना दूर हो गयी ,
चकाचौद जिंदगी में खुद को खो गयी।
यह सागर का किनारा , वो लेहरो की आहट,
मेरी सुने मन की वो चंचल सराहट।
तू भी खामोश मैं भी खामोश ,बस एक टूक देख रहे है
जुबा से तो नहीं पर यकीनन आँखों से बोल रहे है।
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