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ससुराल का वो पहला दिन...!!!


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शादी का दिन नजदीक आ रहा था, मन खुश भी था और घबरा भी रहा था | हालांकि मेरा प्रेम विवाह हो रहा था पर ससुराल वालो को अभी जानना बाकि था| वक़्त बीत गया और विदाई का समय आ गया | ससुराल का वो पहला दिन , मेरा वहा पहला कदम | सहमे सहमे मैं अपने सब रिवाज निभा रही थी, कभी अंगूठी रसम कभी खाने की रसम सब करते हुए मुस्कुरा रही थी | माँ ने समझाया था मुझे जैसे तू यहाँ है वैसे ही ससुराल में रहना , खुश रहना और सबको खुश रखना | फिर  भी एक घबराहट सी थी, कुछ गलत न हो बस यह चाहत सी थी |
दिन भर के सारे रिवाज कर के जब हम सब बैठे तो सबने अपने बारे में बताया ,कुछ लोगो ने मुझे छेड़ा कुछ लोगो ने मेरा साथ दिया... तभी मेरी सासु माँ बोली - बेटा, हमारी कोई बेटी नहीं है तो हमे पता ही नहीं की बेटी को रखते कैसे है| अगर तुम्हे कोई भी परेशानी हो तो बेहिचक बताना| 
कुछ हम सीखेंगे कुछ तुम ....इसी को कहते है जिंदगी में साथ निभाना|
आज भी मुझे ससुराल की वो बात याद है सकूं सा मिला था मुझे, इसलिए ससुराल का वो पहला दिन आज भी याद है|

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